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कर्नाटक गवर्नर ने झील-तालाबों का बफर जोन घटाने वाला बिल लौटाया, सरकार से मांगा स्पष्टीकरण

कर्नाटक के गवर्नर थावरचंद गहलोत ने राज्य में झीलों और तालाबों के आसपास के बफर जोन को घटाने वाला बिल सरकार को वापस कर दिया है. साथ ही गवर्नर ने इस बिल को लेकर राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है. गवर्नर का कहना है कि यह जानना जरूरी है कि इस संशोधन से वास्तव में कोई प्रभाव पड़ेगा या नहीं. साथ ही कर्नाटक की एक एसोसिएशन ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि अगर ऐसा होता है तो इकोसिस्टम का संतुलन बिगड़ सकता है.

दरअसल, हाल ही में राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों में कर्नाटक टैंक संरक्षण और विकास प्राधिकरण (संशोधन) बिल पास किया. इस बिल में झीलों और तालाबों के क्षेत्रफल के आधार पर उनके बफर जोन को घटाने का प्रस्ताव रखा गया था.

गर्वनर ने मांगा सरकार से स्पष्टीकरण

गर्वनर गहलोत ने कहा कि इस संबंध ने कार्यालय में कई लोगों ने आपत्तियां भेजी. उन्होंने कहा कि इसलिए इस बिल को लेकर सरकार से स्पष्टीकरण मांगना आवश्यक है और यह जानना भी जरूरी है कि इस संशोधन का वास्तव में कोई प्रभाव पड़ेगा या नहीं. गर्वनर ने सरकार को सूचित करते हुए कहा कि इस फाइल को उचित स्पष्टीकरण के साथ फिर से प्रस्तुत करने के लिए राज्य सरकार को वापस किया जा रहा है.

कहां- कितना बफर जोन

इस नए बिल में कहा गया कि 0.5 गुंटा तक की झीलों के लिए बफर जोन नहीं होगा. एक एकड़ तक की झीलों के लिए बफर जोन 3 मीटर का होगा. 1 से 10 एकड़ के क्षेत्रफल वाली झीलों के लिए 6 मीटर बफर जोन, 10 से 25 एकड़ के क्षेत्रफल वाली झीलों के लिए 12 मीटर बफर जोन, 25 से 100 एकड़ के क्षेत्रफल वाली झीलों के लिए 24 मीटर और 100 एकड़ से अधिक के क्षेत्रफल वाली झीलों के लिए बफर जोन 30 मीटर होगा. इस समय झीलों के लिए एक मानक 30-मीटर बफर जोन होता है, जहां किसी भी तरह का निर्माण करने की परमिशन नहीं होती है.

एसोसिएशन ने बफर जोन बड़ाने का किया अनुरोध

गर्वनर ने सरकार को भेजे अपने पत्र में कहा कि इस बिल को खिलाफ उनके पास बेंगलुरु टाउन हॉल एसोसिएशन का अनुरोध आया है, जिसमें एसोसिएशन ने चिंता व्यक्त की है कि विशेषज्ञों की राय के अनुसार, इस समय का झील बफर जोन 30 मीटर ही अपर्याप्त है, और इकोसिस्टम को संतुलित करने के लिए लगभग 300 मीटर बफर जोन की आवश्यकता है. एसोसिएशन ने कहा कि अगर कुछ बदलाव करना ही है तो बफर जोन को बढ़ाया जाना चाहिए, न कि घटाया जाना चाहिए. साथ ही एसोसिएशन ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने इस संशोधन के बारे में न तो किसी विशेषज्ञ से राय ली और न ही जनता से परामर्श किया है.